That brutal reality written in 1984 using blood as ink| by Journalist Rishabh Shukla aka Painter Babu


| ख़ून को स्याही बना कर 1984 में लिखी गई नृशंसता की वो  घृणास्पद गाथा |

| ऋषभ शुक्ला |

31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए जिसमें देशभर में सिखों के घरों और उनकी दुकानों को लगातार हिंसात्मक तरीके से निशाना बनाया गया। इस दिल दहलाने वाले नरसंहार को अंजाम देने वाले नपुंसकों को सज़ा दिलाने हेतु शासन के निर्देश पर गठित एसआईटी ने दंगे की जांच शुरू की है जिसमें पिछले कुछ समय से तेज़ी देखने को मिली। इसमें जघन्य मामलों (हत्या कर डकैती) के कई मुकदमे शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर में 1984 में हुए सिख दंगों में एसआईटी (स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम) ने कुछ मामलों के संबंध में पंजाब सरकार से जानकारी मांगी है। यदि अब, मानवता के चीथड़े उड़ा देने वाली इस दर्दनाक घटना में न्याय को गति मिलती है तो निश्चित रूप से मृतकों के परिवारजनों की घुटन कम होगी और आने वाली पीढ़ी का हमारे शासन व् न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास अधिक सुदृढ़ होगा।

सिख विरोधी दंगे की जांच कर रही एसआईटी द्वारा कानपुर के किदवईनगर, अर्मापुर, दबौली, निराला नगर आदि स्थानों पर हुई 10 घटनाओं में अब तक 100 आरोपितों के नाम सामने आ चुके हैं। एसआइटी अब तक 47 आरोपितों का सत्यापन कर चुकी है। इन सभी को जल्द गिरफ्तार कर एसआईटी, जेल भेजने की तैयारी में है।  

1984 में हुए दंगों में 127 लोगों की निर्मम हत्या और कई घरों में लूटपाट की घटनाएं हुई थीं। शहर के विभिन्न थानों में हत्या, लूट, डकैती समेत अन्य गंभीर धाराओं में दंगाइयोें के खिलाफ 40 एफआईआर दर्ज हुईं व 28 मामलों में फाइनल रिपोर्ट (एफआर) लगा दी गई थी।

एसआईटी की जांच के दौरान दिल दहला देने वाले बयान सामने आये हैं जिसके बाद इन मामलों में हर सूरतेहाल में अब न्याय मिलना बेहद आवश्यक हो गया है।

उस वक़्त कानपुर में मध्यम और उच्च मध्यमवर्गीय सिख इलाकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया था। अनेकों सिखों के घरों में हिंसा का तांडव रचा गया। गुरुद्वारों, दुकानों, घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। अनेकों सिख परिवारों की हत्या करने में उस वक़्त कापुरुषों के हाथ तक नहीं कांपे। लोगों में ऐसी नृशंसता सवार थी कि मानो मानवता का अंत हो गया हो।

आज भी वह दर्दनाक मंज़र पीड़ितों की आँखों के सामने घूमता है .......लोगों की बर्बरता जोरों पर थी ...सिख परिवारों के घरों को जलाया जा रहा था .....हर ओर कत्लेआम हो रहा था...देखते ही देखते पूरा शहर नफरत, अमानवता की अग्नि में जल उठा था। चारों ओर अंधेरा था। ज्यादातर इलाकों का पानी, बिजली काट दी गयी थी। दंगा करने वाले लोग सिखों को उनके घर से निकालते, उन्हें मारते, फिर उन पर तेल छिड़ककर आग लगा देते। उस वक़्त इंसानियत का एक ऐसा विकृत व् वीभत्स चेहरा सामने आया जिसमें मानवता के नाम पर मात्र राक्षसी प्रवृत्तियां विद्यमान थीं। 

"पति और देवर की दर्दनाक मौत मैं आज भी नहीं भूल पाई हूं। जिस तरह दंगाइयों ने मेरी आंखों के सामने दोनों की लाठी-डंडों और सरिया से पीट-पीटकर मार डाला था, वह दर्द मैं आज भी महसूस करती हूं। दंगाइयों की भीड़ के आगे मैं और मेरा परिवार असहाय था। हम लोग कुछ नहीं कर पाए थे।"

सिख विरोधी दंगे में अपनों को खोने का दुखड़ा पीड़िता ने एसआईटी के समक्ष सुनाया। एसआईटी ने पंजाब के मोहाली में पीड़िता के घर जाकर बयान दर्ज किए हैं। कानपुर के कल्याणपुर में हुकुम सिंह का परिवार रहता था। 1984 के दंगों में हुकुम सिंह के बेटों भगत सिंह व हरबंश सिंह की हत्या हो गई थी।

सिख विरोधी दंगे में दंगाइयों ने शादी के कुछ दिन बाद मायके आई डिप्टी एसपी की पत्नी के घर पर हमला कर दिया था। उनके माता-पिता, दोनों भाइयों समेत अन्य की हत्या कर दी थी। इसका खुलासा डिप्टी एसपी की पत्नी ने एसआईटी को दिए बयान में किया।

कानपुर के किदवईनगर में रहने वाले दंगा पीड़ित पुरुषोत्तम सिंह ने बयान दर्ज कराया कि एक नवंबर 1984 को सैकड़ों दंगाइयों ने उनका घर घेर लिया। महिलाओं ने पड़ोसी पंडितजी के घर जाकर जान बचाई थी। दंगाइओं ने छोटे भाई सरदुल और एक सेवादार गुरुदयाल के साथ मारपीट करते हुए दोनों को रजाई-गद्दों में लपेटा और आग लगाकर मार डाला था। लूटपाट भी की थी। टीम ने उनके भाई सर्वजीत सिंह और दोनों की पत्नियों के बयान भी लिए। जिस भवन में दंगाइयों ने उनकी हत्या की थी, 36 साल बाद फोरेंसिक टीम ने फर्श तोड़कर वहां से खून के नमूने लिए। जांच में पुष्ट हुआ है कि यह मानव रक्त ही है। 

दंगे के दौरान दर्ज मुकदमों की विवेचना कर रही एसआइटी ने मध्यप्रदेश के जबलपुर पहुंचकर तीन मामलों में बयान दर्ज किए। इसमें कानपुर के दादानगर, निराला नगर व अर्मापुर ओएफसी की घटनाओं के पीड़ित शामिल हैं।  उधर, निराला नगर में एक मकान मालिक के बेटे सतवीर सिंह और उनके दो किरायेदारों भूपेंदर सिंह व रक्षपाल सिंह की हत्या कर दी गई थी। 

एसआइटी ने जबलपुर में भूपेंदर के भाई कंवलजीत खनुजा व भाभी कमलजीत के बयान दर्ज किए हैं। उन्होंने पांच आरोपियों को पहचाना भी है। इससे पूर्व पुलिस सतवीर की पत्नी तेजेंदर कौर से लुधियाना जाकर और रक्षपाल के बेटे से जालंधर जाकर बयान ले चुकी है। अर्मापुर स्थित ओईएफ से ट्रांसफर के बाद जबलपुर की फैक्टरी में नौकरी कर रहे दो कर्मचारियों के भी एसआइटी ने बयान दर्ज किए हैं। दोनों ने दंगे के दौरान ओईएफ गेट पर तीन कर्मचारियों कुलवंत सिंह, मोहन सिंह व आरएस अरोड़ा की हत्या की वारदात बताई है। 

एसएसपी ने बताया कि फोरेंसिक जांच में तमाम वैज्ञानिक साक्ष्य मिले हैं जो आरोपियों को सज़ा दिलाने में कारगर साबित होंगे। 

सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग किस तरह नियम, कानून का बेजा इस्तेमाल कर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकते हैं सिख विरोधी दंगा इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। यह घटना आज़ाद भारत के इतिहास में क्रूरतम घटनाओं में सबसे प्रमुख है। 1984 के दंगे इस तरह भड़के कि हजारों सिखों की बलि लिए बगैर शांत नहीं हुए। इतने वर्षों तक न्याय की आस में न जाने कितने ही सिख परिवारों की आँखें पथरा गई होंगी, सज़ा न मिलने के कारण गुनहगार अपने काले कारनामों को न जाने कितनी बार, कितने लोगों के साथ दोहरा चुका होगा ......ये संभावनाएं हृदय में हूक सी पैदा करती हैं और उस हूक के साथ निकलती हर सांस की बस यही मांग होती है कि बहुत हो गया इंतज़ार.... अधर्म, हिंसा, अन्याय, बर्बरता, दुराचार पर अब सिर्फ और सिर्फ लगना चाहिए पूर्ण विराम।
















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